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जहाँ कृष्ण ने अपना राज्य स्थापित किया — ‘राजाधिराज द्वारकाधीश’ द्वारका वह पावन नगरी है जहाँ भगवान श्रीकृष्ण ने मथुरा से प्रस्थान के बाद अपना राजवंश और शासन स्थापित किया। यहाँ वे राजा नहीं — राजाधिराज, धर्म के संरक्षक और योगेश्वर के रूप में पूजे जाते हैं। द्वारका को “स्वर्ग समान नगर” कहा जाता है —जहाँ भक्ति, वैभव, समुद्री शांति और दिव्यता एक साथ अनुभूत होते हैं।
उत्पत्ति / कथा – वज्रनाभ द्वारा प्रतिष्ठित दिव्य स्वरूप
मंदिर के शिखर पर ध्वज–दर्शन मन को अपार शक्ति देते हैं , समुद्र की लहरों में श्रीकृष्ण की ऊर्जा का स्पंदन , गर्भगृह में शांत, तेजस्वी और राजसी श्रीकृष्ण द्वारका की हवाओं में अद्भुत दिव्य विस्तार की अनुभूति
स्थान: द्वारका नगर, गुजरात
निकट हवाई अड्डा: जामनगर (लगभग 130 किमी), राजकोट (लगभग 225 किमी)
रेलवे: द्वारका रेलवे स्टेशन (देश के प्रमुख शहरों से कनेक्टेड)
सड़क मार्ग: जामनगर, ओखा, पोरबंदर, राजकोट से उत्कृष्ट कनेक्टिविटी
जन्माष्टमी उत्सव (बहुत भव्य)
अन्नकूट
ध्वजारोहण समारोह
होली / फाल्गुन महोत्सव
कार्तिक मास दीपदान
भावार्थ
“यह वह धाम है जहाँ कृष्ण केवल भगवान नहीं , धर्मराज, नीति–नियंता और विश्व के मार्गदर्शक बनकर विराजते हैं।”
जहाँ कृष्ण का “अंतरंग घर” माना जाता है
बेट द्वारका वह पावन द्वीप है जिसे श्रीकृष्ण का निजी निवास (Private Residence) माना गया है। यहाँ स्थित श्री केशवरायजी मंदिर कृष्ण–भक्ति की घनिष्ठता और निजत्व का प्रतीक है — जहाँ भक्त कहते हैं:
“यहाँ हम ‘राजा–कृष्ण’ से नहीं, ‘अपने घर के कृष्ण’ से मिलते हैं।”
उत्पत्ति / कथा – श्रीकृष्ण का निजी द्वीप–धाम
भक्तों का गहन विश्वास: “यह धाम कृष्ण के हृदय के सबसे निकट है।”
समुद्र यात्रा के दौरान ही दिव्य कंपन और शांत भाव , मंदिर में प्रवेश पर “घर वाली आत्मीयता” , छोटा, शांत, अत्यंत पवित्र वातावरण , समुद्र की हवा में कृष्ण के निजी जीवन का एहसास यह धाम अक्सर भक्तों के मन में यह भाव लाता है “आज कृष्ण अपने घर पर मेरा स्वागत कर रहे हैं।”
बेट द्वारका एक द्वीप है, ओखा जेट्टी (Okha Jetty) से नाव द्वारा पहुँचने की व्यवस्था द्वारका से ओखा लगभग 30–35 किमी द्वारकाधीश मंदिर के दर्शन के साथ यात्रा को जोड़ना अत्यंत शुभ माना जाता है.
जन्माष्टमी
कार्तिक दीपदान
समुद्री यात्रा विशेष भक्ति कार्यक्रम
अन्नकूट
जहाँ ‘रण छोड़ना’ नहीं — भक्ति की रक्षा है डाकोर वह दिव्य भूमि है जहाँ श्रीकृष्ण रणछोड़राय स्वरूप में पूजे जाते हैं। यह नाम “रण छोड़ने” के कारण नहीं, बल्कि “भक्त की रक्षा हेतु रण को पार कर जाना” के कारण दिया गया। डाकोर बताता है कि— “कृष्ण कभी रण नहीं छोड़ते, वे हर रण में अपने भक्त को बचाने आते हैं।”
कथा – कृष्ण का प्रेम, साहस और भक्त–रक्षा
कथा के अनुसार: कृष्ण ने एक युद्धस्थल छोड़ा, पर भीति या पलायन के कारण नहीं। उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि एक भक्त–गृहस्थ समुदाय को उनकी आवश्यकता थी। वे डाकोर के भक्तों की रक्षा हेतु वहाँ उपस्थित हुए। इसलिए उन्हें रणछोड़ नहीं, बल्कि रणवीर–रक्षक कृष्ण कहा जाता है। डाकोर के स्थानीय कृषक और व्यापारी समुदाय कृष्ण को “घर के रक्षक, मार्गदर्शक और विजयदाता” मानते हैं।
मंदिर प्रवेश पर गहन रक्षक–ऊर्जा का अनुभव , रणछोड़रायजी का तेजस्वी, राजसी और वीर–स्वरूप स्थानीय भक्तों की सरल भक्ति जो मन को छू लेती है ,प्रसाद और चरणामृत में अद्भुत शांति कई भक्त कहते हैं— “डाकोर में कृष्ण प्रभु नहीं, घर के रक्षक बनकर मिलते हैं।”
सेवा सुझाव (Highly Effective Seva)
तुलसी–पत्र चरणों में अर्पित करें तुलसी पत्र चढ़ाते समय मन में यह संकल्प करें— “मेरी बाधाएँ मार्ग बन जाएँ, और मेरा भय साहस में बदल जाए।”
यह सेवा विशेष रूप से:
संघर्ष , केस , व्यापारिक निर्णय, परिवार की चुनौतियों में अत्यंत शक्तिशाली मानी जाती है।
स्थान: डाकोर, ज़िला खेड़ा (गुजरात)
निकट शहर: आनंद (20 किमी), वडोदरा (35–40 किमी)
रेलवे: आनंद / वडोदरा
हवाईअड्डा: वडोदरा
निकट धाम: रँचानपुरा, गोमती तालाब, मल्लापुर
फाल्गुन पूर्णिमा (सबसे प्रमुख मेला)
जन्माष्टमी
अन्नकूट
कार्तिक दीपदान
जहाँ श्यामल स्वरूप वन और जन दोनों को आशीर्वाद देते हैं
शामलाजी धाम अरावली पर्वत श्रृंखला की गोद में स्थित है — जहाँ भगवान श्रीकृष्ण श्यामल (कृष्णवर्ण) चक्रधारी स्वरूप में पूजित हैं। यहाँ की भक्ति वनवासी संस्कृति और वैष्णव परंपरा दोनों का सुंदर संगम है। यह धाम प्रकृति, शक्ति, सुरक्षा और शांति — चारों का दिव्य केंद्र माना जाता है।
कथा – वनवासी संस्कृति में कृष्ण का चक्रधारी ‘श्यामल’ रूप
प्राचीनकाल में वनवासी और आदिवासी समुदाय भगवान को श्यामल, चक्रधारी, वन–रक्षक रूप में पूजते थे। इसी कारण शामलाजी का स्वरूप अद्वितीय, तेजस्वी और अत्यंत पुरातन माना जाता है। धाम पर वैष्णव संतों और स्थानीय जनजाति दोनों का बराबर प्रेम रहा है। यह स्थान बताता है— “ईश्वर केवल महलों में ही नहीं, वन, पर्वत और जनजीवन में भी उतनी ही शक्ति से विद्यमान हैं।”
अरावली पर्वत की हवा में विशिष्ट शक्ति , मंदिर परिसर में प्राकृतिक शांति व दिव्य कंपन, वनवासी परंपरा की सरल, सच्ची भक्ति , शामलाजी के चक्रधारी, श्यामल स्वरूप से सुरक्षा की अनुभूति कई भक्त कहते हैं — “यहाँ भगवान वन और पर्वत के रक्षक बनकर मिलते हैं।”
सेवा सुझाव (Highly Effective Seva)
जल–अर्पण (Water Offering) शामलाजी को जल अर्पित करना रोग, बाधा और नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने वाला अत्यंत शुभ कर्म माना जाता है।
सेवा विधि:
स्थान: अरावली हिल्स, गुजरात
निकट शहर: मोधासा, हिम्मतनगर
निकटतम स्टेशन: हिम्मतनगर
निकट हवाई अड्डा: अहमदाबाद / उदयपुर
विशेष: वन और घाटियों से घिरा शांत, दिव्य परिसर
शामलाजी मेला (अत्यंत प्रसिद्ध)
जन्माष्टमी
अन्नकूट
पूर्णिमा स्नान
भावार्थ
“मैं तेरे तन–मन की रक्षा करूँगा — जैसे वन अपने जीवों की रक्षा करता है।”
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