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जहाँ प्रभु ‘भक्त के मित्र’ बनकर खड़े हैं महाराष्ट्र का पंढरपुर वह धाम है जहाँ श्रीकृष्ण विठोबा / विठ्ठल रूप में विराजते हैं — एक ऐसे स्वरूप में जो राजा नहीं, भक्त का सखा (मित्र) बनकर खड़े हैं। यहाँ भगवान का सरल संदेश है: “जब सब छोड़ दें, मैं तेरे साथ हूँ।”
कथा – पुंडलिक की सेवा और कृष्ण का प्रतीक्षा–रूप
कथा के अनुसार: भक्त पुंडलिक माता–पिता की सेवा में लीन थे। श्रीकृष्ण मिलने आए, पर पुंडलिक सेवा में इतना डूबे थे कि तुरंत नहीं आ सके। उन्होंने कृष्ण को ईंट (वीट) दिखाकर कहा — “प्रभु, थोड़ी प्रतीक्षा कीजिए।” कृष्ण उसी ईंट पर खड़े होकर पुंडलिक की सेवा पूरी होने का इंतज़ार करते रहे। इसलिए वे “विठोबा” (वीट + स्थिर रहने वाले) कहलाए यह स्वरूप सिखाता है: “भक्ति में कर्म (सेवा) सर्वोच्च है — और भगवान उसका मान रखते हैं।”
विठोबा के दर्शन में गहरी सरलता , ऐसा लगता है मानो भगवान अभी–अभी “सखी” की तरह बात कर लेंगे पंढरपुर की हवा में संत परंपरा (ज्ञानेश्वर, तुकाराम) का दिव्य स्पंदन वारकरी परंपरा का प्रेम और संकीर्तन मन को आनंद से भर देता है कई भक्त कहते हैं—“यहाँ भगवान नहीं, मेरा मित्र खड़ा है।”
सेवा सुझाव (Highly Effective Seva)
‘ईंट (वीट)’ के प्रतीक पर दोनों हथेलियाँ रखें और मन की बात कहें
इस सेवा का भाव है: विठ्ठल से सखा–भाव में बात करना , मन का भार उतारना , अपनी कठिनाई, दुःख या संकल्प को प्रभु को सौंप देना यह सेवा मानसिक शांति, नशा–मुक्ति, भाव–संतुलन और आत्मविश्वास देती है।
स्थान: पंढरपुर, महाराष्ट्र
निकट रेलवे: कुरुंदवाड / मोहोळ / पंढरपुर
निकट हवाईअड्डा: पुणे / सोलापुर
प्रमुख तीर्थ: विठोबा–रुक्मिणी मंदिर परिसर
संत परंपरा: ज्ञानेश्वर माउली, तुकाराम महाराज, निवृत्तिनाथ, नामदेव महाराज
आषाढ़ी वारी / आषाढ़ी एकादशी: वारकरी पंथ का सबसे बड़ा तीर्थ, लाखों भक्त पैदल यात्रा कर विठोबा–दर्शन करते हैं।
कार्तिकी एकादशी: रुक्मिणी–विठ्ठल की विशेष आरती और भजन संध्या।
भावार्थ
“तुझे सहारा चाहिए? मैं यही खड़ा हूँ — जैसे पुंडलिक के लिए खड़ा था।”
जहाँ ‘जग के नाथ’ सभी को गले लगाते हैं पुरी का जगन्नाथ धाम विश्व का सबसे समावेशी और करुणामय कृष्ण–धाम माना जाता है। यहाँ श्रीकृष्ण जगन्नाथ रूप में विराजते हैं — एक ऐसे रूप में, जहाँ जाति, भाषा, धर्म, संस्कृति किसी की भी सीमा नहीं। सभी भक्त समान रूप से उनके प्रिय हैं। यह धाम कहता है: “तुम्हारा स्वरूप कैसा भी हो — जगन्नाथ तुम्हें खुले बाँहों से स्वीकार करते हैं।”
कथा – ब्रह्मउत्सर्ग रहस्य और भाई–बहनों की त्रिदेव लीला
भक्ति परंपरा के अनुसार, जगन्नाथ का लकड़ी–स्वरूप ब्रह्मउत्सर्ग रहस्य से जुड़ा है — वह रहस्य जिसमें कृष्ण दिव्य चेतना रूप में प्रकट हुए। यह त्रिमूर्ति — जगन्नाथ (कृष्ण), बलभद्र, औरबहन सुभद्रा ब्रह्मांड की रक्षा, धर्म–संतुलन और भक्त–कल्याण का त्रिनेत्र हैं। पुरी धाम को “पुरी श्रीक्षेत्र” कहा जाता है जहाँ भगवान ने संपूर्ण विश्व का रक्षक बनने का संकल्प लिया। यह धाम सिखाता है:
“कृष्ण केवल ब्रज के नहीं — संपूर्ण जगत के स्वामी हैं।”
गर्भगृह के पास खड़े होते ही गहरी, विशाल ऊर्जा जगन्नाथ के बड़े नेत्र — मानो सब देख रहे हों, सब स्वीकार कर रहे हों समुद्री बयार में आध्यात्मिक कंपन रथयात्रा में भीड़ के बीच अद्भुत एकता का अनुभव कई भक्त कहते हैं— “पुरी में कृष्ण नहीं — ‘जगत–करुणानाथ’ के दर्शन होते हैं।”
सेवा सुझाव (Highly Effective Seva)
रथयात्रा में ‘रथ–रस्सी’ पकड़ना – लोकविश्वास: “रथ की रस्सी को खींचना, भाग्य के चक्र को सही दिशा में मोड़ना है।”
यह सेवा देती है:
साहस , जीवन–गति , भाग्योदय और रुकावटों का हटना , यदि यात्रा संभव न हो तो घर में भी मन से “रथ खींचने का संकल्प” किया जा सकता है।
स्थान: पुरी, ओडिशा
निकट हवाईअड्डा: भुवनेश्वर (60 किमी)
रेलवे: पुरी जंक्शन
प्रसिद्ध: जगन्नाथ मंदिर, समुद्र–तट, गुंडिचा मंदिर
सर्वाधिक भीड़: रथयात्रा (विश्व प्रसिद्ध)
रथयात्रा (विश्व–प्रसिद्ध): जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा का भव्य रथोत्सव दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक यात्रा–पर्व।
नबा–कलेवर: भगवान का लकड़ी–स्वरूप बदलने का दिव्य रहस्यमय उत्सव।
स्नान–यात्रा / कार्तिक मास दीपोत्सव
जहाँ श्याम का प्रथम प्राकट्य हुआ — बारबारिक की वंशभूमि, हरियाणा के पानीपत ज़िले में स्थित चुलकाना धाम वह स्थान है जहाँ बारबारिक (श्याम बाबा) का जन्म हुआ था। यह धाम खाटू श्यामजी की मूल ऊर्जा–स्थली माना जाता है — जहाँ बारबारिक ने अपनी तीन बाण सिद्धि, अद्वितीय शक्ति, और कर्म–धर्म का कल्प प्राप्त किया। यहाँ का भाव: “यह केवल जन्मभूमि नहीं — श्याम शक्ति का मूल स्रोत है।”
कथा – बारबारिक का जन्म और तीन बाण का वरदान चुलकाना वही स्थान है जहाँ घटोत्कच और मोरवी के पुत्र बारबारिक का जन्म हुआ। बचपन से ही वे अद्भुत वीर, सत्यवादी और दानी थे। उन्हें अक्षय शक्ति और तीन बाण का दिव्य वरदान यहीं प्राप्त हुआ। बारबारिक ने प्रतिज्ञा ली — “मैं सदैव कमजोर पक्ष का साथ दूँगा।” इस अद्वितीय धर्म–प्रतिज्ञा के कारण ही कृष्ण ने उन्हें कलियुग का श्याम स्वरूप बनने का आशीर्वाद दिया। इसलिए चुलकाना धाम को “श्याम रूप का प्रथम उद्गम” कहा जाता है।
चुलकाना धाम के प्रांगण में शक्ति और पराक्रम का अनोखा अनुभव “श्याम मेरे साथ हैं” का आत्मविश्वास मनोकामना–पत्र चढ़ाने पर आंतरिक हल्कापन मंदिर की ध्वजा में निरंतर ऊर्जा का प्रवाह भक्तों का कहना: “खाटू कृपा का बीज चुलकाना में ही बोया गया था।”
सेवा सुझाव (Highly Effective Seva)
“तीन–बाण संकल्प सेवा”
चरणों के सामने बैठकर 3 बार “श्याम मेरे साथ हैं” कहें और अपनी एक मनोकामना श्याम को सौंप दें।
यह सेवा मन से बाधाएँ हटाकर संकल्प को शक्ति देती है। नारियल और लाल ध्वजा चढ़ाना यहाँ ध्वजा चढ़ाना विजय और संरक्षण का प्रतीक माना जाता है।
स्थान: चुलकाना गाँव, पानीपत (हरियाणा)
निकट शहर: पानीपत, समालखा
निकट रेलवे: समालखा / पानीपत
निकट हवाईअड्डा: दिल्ली
विशेष: साल भर भक्तों की भीड़, विशेषकर पूर्णिमा/एकादशी
फाल्गुन मेला (खाटू से जुड़ा मुख्य उत्सव) , पूर्णिमा / एकादशी की विशेष आरती , बारबारिक जन्मोत्सव
भावार्थ
“मैं तेरे संघर्ष के तीन बाण बनूँगा — एक भय काटेगा, एक बाधा हटाएगा, और एक तुझे विजय दिलाएगा।”
जहाँ नन्हें कान्हा ‘खिड़की से दुनिया’ निहारते हैं उदुपि का यह पवित्र मठ भगवान श्रीकृष्ण के बाला–स्वरूप का जीवंत, मधुर और अत्यंत करुणामय धाम है। यहाँ भगवान कनकना किंडि नामक छोटी खिड़की से भक्तों को दर्शन देते हैं — मानो नन्हा कान्हा बाहर झाँककर जगत को प्रेम से देख रहा हो। उदुपि कृष्ण की मुस्कान को भक्त “जीवित बालक की लीलाभाव मुस्कान” कहते हैं।
कथा – समुद्र तट पर चमत्कार और मध्वाचार्य को बाल–कृष्ण की प्राप्ति
कनकना किंडि से दर्शन: बेहद जीवंत, करुणा–पूर्ण दृष्टि, मठ परिसर में मधुर कीर्तन और शांत वैष्णव वातावरण , मन से भारीपन का अंत, बालपन जैसी हल्की–फुल्की ऊर्जा, भगवान के चरणों में बैठकर मन तुरंत शांत हो जाता है कई भक्त कहते हैं— “उदुपि कृष्ण मुस्कान से ही मन का दुःख पिघला देते हैं।”
सेवा सुझाव (Highly Effective Seva)
छोटे बच्चों को भोजन / फल दान करें – यह सेवा बाल गोपाल की कृपा तुरंत प्राप्त कराने वाली मानी जाती है। आप:
स्थान: उदुपि, तटीय कर्नाटक
निकट हवाईअड्डा: मंगलुरु (60–65 किमी)
निकट स्टेशन: उदुपि रेलवे स्टेशन
विशेष आकर्षण: कनकना किंडि, मध्वाचार्य मठ, प्रसादम, समुद्र तट
जन्माष्टमी – भव्य बाल–लीला उत्सव
पार्यया उत्सव (प्रत्येक 2 वर्ष में)
जहाँ ‘भूलोक वैकुंठ’ में कृष्ण भक्ति जीवंत होती है , गुरुवायूर का श्रीकृष्ण मंदिर दक्षिण भारत में सबसे प्राचीन और शक्तिशाली बाल–गोपाल धाम माना जाता है। भक्त इसे “भूलोक वैकुंठ” कहते हैं — क्योंकि यहाँ के दर्शन मन, शरीर और जीवन — तीनों पर चमत्कारिक असर डालते हैं।
उत्पत्ति / कथा – गुरु और वायु द्वारा प्रतिष्ठित दिव्य विग्रह द्वारका के समुद्र में समा जाने के पश्चात, भगवान श्रीकृष्ण का गृह–पूजित पारिवारिक विग्रह (Family Deity Idol) भगवान गुरु (बृहस्पति) और वायु देव द्वारा सुरक्षित निकालकर दक्षिण ले जाया गया। दोनों ने इसे उस स्थान पर स्थापित किया जो आगे चलकर गुरुवायूर कहलाया —Guru + Vayu + Oor (स्थान) यह विग्रह बालक कृष्ण का अत्यंत मंगलकारी, दयालु और करुणामय स्वरूप है। यह धाम स्वयं भगवान की वह स्मृति है जो द्वारका के विलुप्त होने के बाद भी जीवित रही।
गर्भगृह के पास दिव्य बाल–स्वरूप की ऊर्जा अत्यंत प्रबल, मंदिर परिसर में अद्भुत अनुशासन, शांति और आध्यात्मिकता , वेद–मंत्रों की ध्वनि में मन का पूर्ण स्थिर होना ,बच्चे, परिवार और गृहस्थ जीवन के लिए विशेष सुरक्षा का अनुभव कई भक्त कहते हैं — “गुरुवायूरप्पन की मुस्कान में जीवन की सभी चिंताएँ पिघल जाती हैं।”
सेवा सुझाव (Highly Effective Seva)
बच्चों के नाम से ‘चोरoonu’ (अन्नप्राशन) या धूप–दीप सेवा
यह सेवा देती है: बाल–स्वास्थ्य , भविष्य–सुरक्षा , परिवार में सौभाग्य , ग्रह–निवारणमंदिर रसोई (अन्नदाता सेवा) में दान – अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है — यह सेवा दुख, रोग और मानसिक बाधाओं को कम करती है।
स्थान: गुरुवायूर, त्रिशूर (केरल)
निकट स्टेशन: गुरुवायूर / त्रिशूर
निकट हवाईअड्डा: कोचीन (Cochin International Airport)
महत्वपूर्ण: केवल हिंदुओं को प्रवेश
गुरुवायूर एकादशी (सर्वोच्च उत्सव)
कृष्ण जन्माष्टमी
दीपम/कार्तिक उत्सव
अन्नदान कार्यक्रम
जहाँ कृष्ण ‘सारथी’ बनकर जीवन का मार्ग दिखाते हैं, चेन्नई का यह प्राचीन वैष्णव मंदिर वह धाम है जहाँ भगवान श्रीकृष्ण पार्थसारथी — अर्जुन के सारथी, मार्गदर्शक और धर्म–रक्षक रूप में पूजे जाते हैं। यहाँ कृष्ण हमें सिखाते हैं: “जब जीवन युद्ध बने, तो मैं तेरे रथ का सारथी बनकर साथ हूँ।”
उत्पत्ति / कथा – अर्जुन के सारथी रूप का दिव्य मंदिर यह दक्षिण भारत के सबसे प्राचीन श्रीवैष्णव मंदिरों में से एक है। यहाँ कृष्ण का स्वरूप धर्मयुद्ध के सारथी के रूप में है — जिनकी मूर्ति पर तीर–कमान और युद्ध के घाव भी अंकित माने जाते हैं। महाभारत में अर्जुन के सारथी बनकर, कृष्ण ने गीता का ज्ञान, धर्म का मार्ग और निर्णय की स्पष्टता दी। इसी करुणामय मार्गदर्शक रूप को पार्थसारथी कहा जाता है — “पार्थ (अर्जुन) का सारथी (रथ चलाने वाला)।”
गर्भगृह में प्रवेश करते ही मार्गदर्शन और स्थिरता का अनुभव, मंदिर में वेदपाठ और दिव्य दक्षिण भारतीय परंपरा , कृष्ण का युद्धकालीन, तेजस्वी, साहसी स्वरूप , मन के द्वंद्व का तुरंत हल्का होना कई भक्त कहते हैं— “चेन्नई में कृष्ण मुझे दिशा देने आए।”
सेवा सुझाव (Highly Effective Seva)
“सारथी संकल्प” – मन का रथ कृष्ण को सौंपें मंदिर में आँखें बंद कर कल्पना करें कि: कृष्ण आपका रथ चला रहे हैं और आप अर्जुन की तरह उनका मार्गदर्शन सुन रहे हैं। यह सेवा देती है:
गीता के 18वें अध्याय का 1 श्लोक रोज पढ़ें पार्थसारथी की कृपा से मन में विवेक और संतुलन आता है।
स्थान: त्रिप्लिकेन (Triplicane)चेन्नई
निकट रेलवे: चेन्नई बीच / चेन्नई सेंट्रल
हवाईअड्डा: चेन्नई इंटरनेशनल एयरपोर्ट
विशेष: 108 दिव्य देशमों में से एक; श्रीवैष्णव परंपरा का प्रमुख केंद्र
निकट धाम: कपालेश्वर मंदिर, मरीना बीच
ब्रहमोत्सव (Bhrahmotsavam)
रथोत्सव
वैष्णव आचार्यों के त्यौहार
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी
वैकुंठ एकादशी
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