Krishna Heritage: A Legacy of Devotion

A sacred space celebrating devotion, history, and spiritual connection.

Krishna Heritage

भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी पवित्र धरोहर

1. पंढरपुर विठोबा – महाराष्ट्र

जहाँ प्रभुभक्त के मित्रबनकर खड़े हैं   महाराष्ट्र का पंढरपुर वह धाम है जहाँ श्रीकृष्ण विठोबा / विठ्ठल रूप में विराजते हैंएक ऐसे स्वरूप में जो राजा नहीं, भक्त का सखा (मित्र) बनकर खड़े हैं। यहाँ भगवान का सरल संदेश है: जब सब छोड़ दें, मैं तेरे साथ हूँ।

कथापुंडलिक की सेवा और कृष्ण का प्रतीक्षारूप
कथा के अनुसार:   भक्त पुंडलिक मातापिता की सेवा में लीन थे।  श्रीकृष्ण मिलने आए, पर पुंडलिक सेवा में इतना डूबे थे कि तुरंत नहीं सके।  उन्होंने कृष्ण को ईंट (वीट) दिखाकर कहा — “प्रभु, थोड़ी प्रतीक्षा कीजिए।कृष्ण उसी ईंट पर खड़े होकर पुंडलिक की सेवा पूरी होने का इंतज़ार करते रहे। इसलिए वे विठोबा (वीट + स्थिर रहने वाले) कहलाए यह स्वरूप सिखाता है: भक्ति में कर्म (सेवा) सर्वोच्च हैऔर भगवान उसका मान रखते हैं।

प्राप्ति / आशीर्वाद

भक्तों का अनुभव

विठोबा के दर्शन में गहरी सरलता ,  ऐसा लगता है मानो भगवान अभीअभीसखीकी तरह बात कर लेंगे  पंढरपुर की हवा में संत परंपरा (ज्ञानेश्वर, तुकाराम) का दिव्य स्पंदन वारकरी परंपरा का प्रेम और संकीर्तन मन को आनंद से भर देता है  कई भक्त कहते हैंयहाँ भगवान नहीं, मेरा मित्र खड़ा है।

सेवा सुझाव (Highly Effective Seva)
ईंट (वीट)’ के प्रतीक पर दोनों हथेलियाँ रखें और मन की बात कहें
इस सेवा का भाव है: विठ्ठल से सखाभाव में बात करना , मन का भार उतारना , अपनी कठिनाई, दुःख या संकल्प को प्रभु को सौंप देना  यह सेवा मानसिक शांति, नशामुक्ति, भावसंतुलन और आत्मविश्वास देती है।

यात्रा संकेत

स्थान: पंढरपुर, महाराष्ट्र

निकट रेलवे: कुरुंदवाड / मोहोळ / पंढरपुर

निकट हवाईअड्डा: पुणे / सोलापुर

प्रमुख तीर्थ: विठोबारुक्मिणी मंदिर परिसर

संत परंपरा: ज्ञानेश्वर माउली, तुकाराम महाराज, निवृत्तिनाथ, नामदेव महाराज

प्रमुख उत्सव

आषाढ़ी वारी / आषाढ़ी एकादशी: वारकरी पंथ का सबसे बड़ा तीर्थ, लाखों भक्त पैदल यात्रा कर विठोबादर्शन करते हैं।

कार्तिकी एकादशी: रुक्मिणीविठ्ठल की विशेष आरती और भजन संध्या।

“विठ्ठल विठ्ठल जय हरि विठ्ठल”

भावार्थ

तुझे सहारा चाहिए? मैं यही खड़ा हूँ —  जैसे पुंडलिक के लिए खड़ा था।

2. जगन्नाथ मंदिर – पुरी

जहाँजग के नाथसभी को गले लगाते हैं  पुरी का जगन्नाथ धाम विश्व का सबसे समावेशी और करुणामय कृष्णधाम माना जाता है।  यहाँ श्रीकृष्ण जगन्नाथ रूप में विराजते हैंएक ऐसे रूप में, जहाँ जाति, भाषा, धर्म, संस्कृति किसी की भी सीमा नहीं।  सभी भक्त समान रूप से उनके प्रिय हैं। यह धाम कहता है: तुम्हारा स्वरूप कैसा भी होजगन्नाथ तुम्हें खुले बाँहों से स्वीकार करते हैं।

कथाब्रह्मउत्सर्ग रहस्य और भाईबहनों की त्रिदेव लीला
भक्ति परंपरा के अनुसार, जगन्नाथ का लकड़ीस्वरूप ब्रह्मउत्सर्ग रहस्य से जुड़ा हैवह रहस्य जिसमें कृष्ण दिव्य चेतना रूप में प्रकट हुए। यह त्रिमूर्तिजगन्नाथ (कृष्ण), बलभद्र, औरबहन सुभद्रा  ब्रह्मांड की रक्षा, धर्मसंतुलन और भक्तकल्याण का त्रिनेत्र हैं। पुरी धाम को पुरी श्रीक्षेत्र कहा जाता है जहाँ भगवान ने संपूर्ण विश्व का रक्षक बनने का संकल्प लिया। यह धाम सिखाता है:
कृष्ण केवल ब्रज के नहींसंपूर्ण जगत के स्वामी हैं।

प्राप्ति / आशीर्वाद

भक्तों का अनुभव

गर्भगृह के पास खड़े होते ही गहरी, विशाल ऊर्जा जगन्नाथ के बड़े नेत्रमानो सब देख रहे हों, सब स्वीकार कर रहे हों समुद्री बयार में आध्यात्मिक कंपन रथयात्रा में भीड़ के बीच अद्भुत एकता का अनुभव कई भक्त कहते हैंपुरी में कृष्ण नहीं — ‘जगतकरुणानाथके दर्शन होते हैं।

सेवा सुझाव (Highly Effective Seva)

 रथयात्रा मेंरथरस्सीपकड़ना – लोकविश्वास: रथ की रस्सी को खींचना, भाग्य के चक्र को सही दिशा में मोड़ना है।

यह सेवा देती है:

साहस , जीवनगति , भाग्योदय और रुकावटों का हटना , यदि यात्रा संभव हो तो घर में भी मन सेरथ खींचने का संकल्पकिया जा सकता है।

यात्रा मार्ग

स्थान: पुरी, ओडिशा

निकट हवाईअड्डा: भुवनेश्वर (60 किमी)

रेलवे: पुरी जंक्शन

प्रसिद्ध: जगन्नाथ मंदिर, समुद्रतट, गुंडिचा मंदिर

सर्वाधिक भीड़: रथयात्रा (विश्व प्रसिद्ध)

प्रमुख उत्सव

रथयात्रा (विश्वप्रसिद्ध): जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा का भव्य रथोत्सव दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक यात्रापर्व।

नबाकलेवर: भगवान का लकड़ीस्वरूप बदलने का दिव्य रहस्यमय उत्सव।

स्नानयात्रा / कार्तिक मास दीपोत्सव

अनुशंसित मंत्र : “जय जगन्नाथ”

3. चुलकाना धाम – श्री खाटू श्यामजी (हरियाणा)

जहाँ श्याम का प्रथम प्राकट्य हुआबारबारिक की वंशभूमि,  हरियाणा के पानीपत ज़िले में स्थित चुलकाना धाम वह स्थान है जहाँ  बारबारिक (श्याम बाबा) का जन्म हुआ था। यह धाम खाटू श्यामजी की मूल ऊर्जास्थली माना जाता हैजहाँ बारबारिक ने अपनी तीन बाण सिद्धि, अद्वितीय शक्ति, और कर्मधर्म का  कल्प प्राप्त किया। यहाँ का भाव: यह केवल जन्मभूमि नहींश्याम शक्ति का मूल स्रोत है।

कथाबारबारिक का जन्म और तीन बाण का वरदान चुलकाना वही स्थान है जहाँ घटोत्कच और मोरवी के पुत्र बारबारिक का जन्म हुआ। बचपन से ही वे अद्भुत वीर, सत्यवादी और दानी थे।  उन्हें अक्षय शक्ति और तीन बाण का दिव्य वरदान यहीं प्राप्त हुआ। बारबारिक ने प्रतिज्ञा लीमैं सदैव कमजोर पक्ष का साथ दूँगा।इस अद्वितीय धर्मप्रतिज्ञा के कारण ही  कृष्ण ने उन्हें कलियुग का श्याम स्वरूप बनने का आशीर्वाद दिया। इसलिए चुलकाना धाम को श्याम रूप का प्रथम उद्गम कहा जाता है।

प्राप्ति / आशीर्वाद

भक्तों का अनुभव

चुलकाना धाम के प्रांगण में शक्ति और पराक्रम का अनोखा अनुभव श्याम मेरे साथ हैंका आत्मविश्वास मनोकामनापत्र चढ़ाने पर आंतरिक हल्कापन मंदिर की ध्वजा में निरंतर ऊर्जा का प्रवाह भक्तों का कहना: खाटू कृपा का बीज चुलकाना में ही बोया गया था।

सेवा सुझाव (Highly Effective Seva)

तीनबाण संकल्प सेवा

चरणों के सामने बैठकर  3 बारश्याम मेरे साथ हैं कहें और अपनी एक मनोकामना श्याम को सौंप दें।

यह सेवा मन से बाधाएँ हटाकर संकल्प को शक्ति देती है।  नारियल और लाल ध्वजा चढ़ाना यहाँ ध्वजा चढ़ाना विजय और संरक्षण का प्रतीक माना जाता है।

यात्रा मार्ग

स्थान: चुलकाना गाँव, पानीपत (हरियाणा)

निकट शहर: पानीपत, समालखा

निकट रेलवे: समालखा / पानीपत

निकट हवाईअड्डा: दिल्ली

विशेष: साल भर भक्तों की भीड़, विशेषकर पूर्णिमा/एकादशी

प्रमुख उत्सव

फाल्गुन मेला (खाटू से जुड़ा मुख्य उत्सव) , पूर्णिमा / एकादशी की विशेष आरती , बारबारिक जन्मोत्सव

अनुशंसित मंत्र : “जय श्री श्याम चुलकाना धाम की जय”

भावार्थ

मैं तेरे संघर्ष के तीन बाण बनूँगाएक भय काटेगा, एक बाधा हटाएगाऔर एक तुझे विजय दिलाएगा।

4. उदुपि श्री कृष्ण मठ – कर्नाटक

जहाँ नन्हें कान्हाखिड़की से दुनियानिहारते हैं  उदुपि का यह पवित्र मठ भगवान श्रीकृष्ण के बालास्वरूप का जीवंत, मधुर और अत्यंत करुणामय धाम है।  यहाँ भगवान कनकना किंडि नामक छोटी खिड़की से भक्तों को दर्शन देते हैंमानो नन्हा कान्हा बाहर झाँककर जगत को प्रेम से देख रहा हो। उदुपि कृष्ण की मुस्कान को भक्तजीवित बालक की लीलाभाव मुस्कानकहते हैं। 

कथासमुद्र तट पर चमत्कार और मध्वाचार्य को बालकृष्ण की प्राप्ति

  • कर्नाटक तट पर एक व्यापारी का जहाज़ तूफ़ान में फँस गया। आचार्य मध्वाचार्य ने समुद्र से उस जहाज़ को सुरक्षित निकालने में सहायता की।  बदले में व्यापारी ने जहाज़ पर रखी वस्तुएँ उपहार में दीं। उन्हीं में एक मिट्टी का गोला था, जिसमें से रुक्मिणी जी द्वारा पूजित बालक कृष्ण की अद्भुत प्रतिमा प्राप्त हुई। प्रतिमा को उदुपि लाकर मठ में प्रतिष्ठित किया गया।  कहते हैं यही कारण है कि भगवान यहाँ बाललीला में लीनखिड़की से झाँकते हुए दुनिया को देखते हैं यह परंपरा आज भी चलती हैकनकना किंडि से दर्शन करना उदुपि का विशेष आशीर्वाद माना जाता है।

प्राप्ति / आशीर्वाद

भक्तों का अनुभव

कनकना किंडि से दर्शन: बेहद जीवंत, करुणापूर्ण दृष्टि, मठ परिसर में मधुर कीर्तन और शांत वैष्णव वातावरण , मन से भारीपन का अंत, बालपन जैसी हल्कीफुल्की ऊर्जा, भगवान के चरणों में बैठकर मन तुरंत शांत हो जाता है कई भक्त कहते हैंउदुपि कृष्ण मुस्कान से ही मन का दुःख पिघला देते हैं।

 सेवा सुझाव (Highly Effective Seva)

 छोटे बच्चों को भोजन / फल दान करें –  यह सेवा बाल गोपाल की कृपा तुरंत प्राप्त कराने वाली मानी जाती है।  आप

  • बच्चों को केला, सेब, मिठाई, खाना
  • या आश्रम में दान अर्पित कर सकते हैं। लोकविश्वासबच्चों को खिलाना = उदुपि कृष्ण को खिलाना।

यात्रा मार्ग

स्थान: उदुपि, तटीय कर्नाटक

निकट हवाईअड्डा: मंगलुरु (60–65 किमी)

निकट स्टेशन: उदुपि रेलवे स्टेशन

विशेष आकर्षण: कनकना किंडि, मध्वाचार्य मठ, प्रसादम, समुद्र तट

प्रमुख उत्सव

जन्माष्टमीभव्य बाललीला उत्सव

पार्यया उत्सव (प्रत्येक 2 वर्ष में)

अनुशंसित मंत्र : “कृष्णाय नमः”

5. गुरुवायूर श्री कृष्ण मंदिर – गुरुवायूर (केरल)

जहाँभूलोक वैकुंठमें कृष्ण भक्ति जीवंत होती है , गुरुवायूर का श्रीकृष्ण मंदिर दक्षिण भारत में सबसे प्राचीन और शक्तिशाली बालगोपाल धाम माना जाता है। भक्त इसे भूलोक वैकुंठ कहते हैंक्योंकि यहाँ के दर्शन मन, शरीर और जीवनतीनों पर चमत्कारिक असर डालते हैं।

उत्पत्ति / कथागुरु और वायु द्वारा प्रतिष्ठित दिव्य विग्रह द्वारका के समुद्र में समा जाने के पश्चात, भगवान श्रीकृष्ण का गृहपूजित पारिवारिक विग्रह (Family Deity Idol) भगवान गुरु (बृहस्पति) और वायु देव द्वारा सुरक्षित निकालकर दक्षिण ले जाया गया। दोनों ने इसे उस स्थान पर स्थापित किया जो आगे चलकर गुरुवायूर कहलायाGuru + Vayu + Oor (स्थान) यह विग्रह बालक कृष्ण का अत्यंत मंगलकारी, दयालु और करुणामय स्वरूप है।  यह धाम स्वयं भगवान की वह स्मृति है जो द्वारका के विलुप्त होने के बाद भी जीवित रही।

महत्त्व / प्राप्ति

भक्तों का अनुभव

गर्भगृह के पास दिव्य बालस्वरूप की ऊर्जा अत्यंत प्रबल, मंदिर परिसर में अद्भुत अनुशासन, शांति और आध्यात्मिकता , वेदमंत्रों की ध्वनि में मन का पूर्ण स्थिर होना ,बच्चे, परिवार और गृहस्थ जीवन के लिए विशेष सुरक्षा का अनुभव कई भक्त कहते हैंगुरुवायूरप्पन की मुस्कान में जीवन की सभी चिंताएँ पिघल जाती हैं।

सेवा सुझाव (Highly Effective Seva)

बच्चों के नाम सेचोरoonu’ (अन्नप्राशन) या धूपदीप सेवा

यह सेवा देती है: बालस्वास्थ्य , भविष्यसुरक्षा , परिवार में सौभाग्य , ग्रहनिवारणमंदिर रसोई (अन्नदाता सेवा) में दान – अत्यंत पुण्यकारी माना जाता हैयह सेवा दुख, रोग और मानसिक बाधाओं को कम करती है।

यात्रा मार्ग

स्थान: गुरुवायूर, त्रिशूर (केरल)

निकट स्टेशन: गुरुवायूर / त्रिशूर

निकट हवाईअड्डा: कोचीन (Cochin International Airport)

  • ड्रेस कोड:
    • पुरुष: धोती (ऊपरी वस्त्र नहीं)
    • महिलाएँ: साड़ी/सलवार/पारंपरिक पोशाक
    •  

महत्वपूर्ण: केवल हिंदुओं को प्रवेश

प्रमुख उत्सव

गुरुवायूर एकादशी (सर्वोच्च उत्सव)

कृष्ण जन्माष्टमी

दीपम/कार्तिक उत्सव

अन्नदान कार्यक्रम

अनुशंसित मंत्र : “ओम् नमो भगवते वासुदेवाय (भगवान गुरुवायूरप्‍पन)” या “कृष्णाय नमः”

6. श्री पार्थसारथी मंदिर – त्रिप्लिकेन, चेन्नई

जहाँ कृष्णसारथीबनकर जीवन का मार्ग दिखाते हैं, चेन्नई का यह प्राचीन वैष्णव मंदिर वह धाम है जहाँ भगवान श्रीकृष्ण पार्थसारथीअर्जुन के सारथी, मार्गदर्शक और धर्मरक्षक रूप में पूजे जाते हैं। यहाँ कृष्ण हमें सिखाते हैं: जब जीवन युद्ध बने, तो मैं तेरे रथ का सारथी बनकर साथ हूँ।

उत्पत्ति / कथाअर्जुन के सारथी रूप का दिव्य मंदिर यह दक्षिण भारत के सबसे प्राचीन श्रीवैष्णव मंदिरों में से एक है। यहाँ कृष्ण का स्वरूप धर्मयुद्ध के सारथी के रूप में हैजिनकी मूर्ति पर तीरकमान और युद्ध के घाव भी अंकित माने जाते हैं। महाभारत में अर्जुन के सारथी बनकर, कृष्ण ने गीता का ज्ञान, धर्म का मार्ग और निर्णय की स्पष्टता दी। इसी करुणामय मार्गदर्शक रूप को पार्थसारथी कहा जाता हैपार्थ (अर्जुन) का सारथी (रथ चलाने वाला)

प्राप्ति / आशीर्वाद

भक्तों का अनुभव

गर्भगृह में प्रवेश करते ही मार्गदर्शन और स्थिरता का अनुभव, मंदिर में वेदपाठ और दिव्य दक्षिण भारतीय परंपरा , कृष्ण का युद्धकालीन, तेजस्वी, साहसी स्वरूप , मन के द्वंद्व का तुरंत हल्का होना कई भक्त कहते हैं—  चेन्नई में कृष्ण मुझे दिशा देने आए।

सेवा सुझाव (Highly Effective Seva)

सारथी संकल्प” – मन का रथ कृष्ण को सौंपें मंदिर में आँखें बंद कर कल्पना करें कि: कृष्ण आपका रथ चला रहे हैं और आप अर्जुन की तरह उनका मार्गदर्शन सुन रहे हैं।  यह सेवा देती है:

  • भ्रम से मुक्ति
  • निर्णय में स्पष्टता
  • सही दिशा
  • करियर में तेजी

 गीता के 18वें अध्याय का 1 श्लोक रोज पढ़ें  पार्थसारथी की कृपा से मन में विवेक और संतुलन आता है।

यात्रा मार्ग

स्थान: त्रिप्लिकेन (Triplicane)चेन्नई

निकट रेलवे: चेन्नई बीच / चेन्नई सेंट्रल

हवाईअड्डा: चेन्नई इंटरनेशनल एयरपोर्ट

विशेष: 108 दिव्य देशमों में से एक; श्रीवैष्णव परंपरा का प्रमुख केंद्र

निकट धाम: कपालेश्वर मंदिर, मरीना बीच

प्रमुख उत्सव

ब्रहमोत्सव (Bhrahmotsavam)

रथोत्सव

वैष्णव आचार्यों के त्यौहार

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी

वैकुंठ एकादशी

अनुशंसित मंत्र : “पार्थसारथये नमः” या “ओम् नमो नारायणाय”

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