A sacred space celebrating devotion, history, and spiritual connection.
उत्पत्ति व कथा – अवतार का पवित्र क्षण
मथुरा की इस पावन भूमि पर माता देवकी और वासुदेव के आठवें पुत्र रूप में भगवान श्रीकृष्ण ने अवतार लिया। कंस की कारागार में जन्म लेने वाले विग्रह ने संसार को यह संदेश दिया कि— “धर्म की रक्षा के लिए भगवान स्वयं अवतरित होते हैं।”
यह स्थल आज भी: अधर्म के नाश, सत्य और न्याय की स्थापना, तथा दैवीय हस्तक्षेप की अनुभूति का सजीव प्रमाण है। जन्मभूमि परिसर का हर पत्थर भक्तों को भयमुक्त जीवन, धर्मनिष्ठ कर्म, और शुद्ध भक्ति का मार्ग दिखाता है।
मथुरा की जन्मभूमि पर दर्शन करने से परम्परागत रूप से यह फल प्राप्त होते हैं:
निकट स्टेशन: Mathura Junction – लगभग 2 किमी
निकट हवाई अड्डा: आगरा (AGRA Airport, 60 किमी)
लोकल परिवहन: ई–रिक्शा, ऑटो उपलब्ध
सर्वश्रेष्ठ दर्शन: सुबह 8:00 AM – 11:00 AM
शाम को संध्या आरती
महापर्व: श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, लड्डू गोपाल झूला उत्सव
भीड़ से बचने के लिए वीकडेज़ को प्राथमिकता दें
उत्पत्ति व कथा – श्याम और श्यामा का दिव्य साक्षात्कार
वृन्दावन की आनंदतरंगिणी धरा पर, महान भक्त स्वामी हरिदास जी की गहन साधना और नाद–ब्रह्म की तान पर श्यामा–श्याम ने स्वयं प्रकट होकर “बाँके बिहारी” स्वरूप में दर्शन दिए। यहाँ कृष्ण मकरंद–माधुरी के प्रतीक हैं— इतने मधुर, इतने मोहितकारी, कि लगातार दर्शन करने पर भक्त समाधि–भाव में खो जाए। इसी कारण मंदिर में दर्शन झलक–झलक कराए जाते हैं — ताकि बिहारीजी की अत्यंत माधुर्यपूर्ण छवि में भक्त पूरी तरह तल्लीन न हो जाए और लौकिक चेतना बनी रहे। इस स्थान का अभिप्राय ही है: “प्रेम में डूबो, पर खोओ मत — कृष्ण स्वयं तुम्हें संभालेंगे।”
निकट स्टेशन: Mathura Junction / Vrindavan Railway Station
स्थानीय परिवहन: ई–रिक्शा, टेम्पो, तांगे
टिप: छुट्टियों और सप्ताहांत पर भीड़ अधिक रहती है
उपयुक्त दर्शन व विशेष झाँकियाँ: सुबह की झाँकी , संध्या की झाँकी , भीड़ से बचने हेतु सुबह के समय श्रेष्ठ
वृन्दावन की होली – बिहारीजी के रंग
हिंडोला उत्सव – झूला झूलते बिहारीजी
शरद पूर्णिमा – माधुर्य–रस का चरम
(तीनों उत्सवों में मंदिर का वातावरण अत्यंत अलौकिक माना जाता है।)
उत्पत्ति व कथा – जब शालिग्राम ने स्वयं स्वरूप धारण किया
वृन्दावन के छः गोस्वामियों में से एक श्री गोपाल भट्ट गोस्वामी की तपस्या, व्रत और अखंड भक्ति से प्रसन्न होकर उनके पूजनीय शालिग्राम शिला ने एक रात्रि स्वयं “राधा रमण” के रूप में प्रकट होकर दिव्य विग्रह धारण कर लिया। यह घटना वैष्णव परंपरा में अद्वितीय चमत्कार मानी जाती है— क्योंकि यह स्वयंप्रकट श्रीकृष्ण विग्रह है, मनुष्य द्वारा निर्मित नहीं। आज भी भक्त दर्शन करते समय अनुभव करते हैं कि: “यह केवल मूर्ति नहीं—स्वयं रमण–स्वरूप श्रीकृष्ण हैं।”
धाम की विशिष्टता
राधा रमण जी के विग्रह में त्रिभंग मुद्रा की मनोहर झलक , विग्रह के साथ रखा शालिग्राम — मूल स्वरूप की स्मृति , 500+ वर्षों से अखंडित चल रही महान सेवा–परम्परा , छोटा, शांत और अत्यधिक आध्यात्मिक स्पंदन वाला मंदिर परिसर
स्थान: Old Vrindavan (निर्मल व संकरे गलियों के बीच)
मंदिर आयु: 500+ वर्ष
पास के धाम: निधिवन, सेवाकुंज, राधा वल्लभ मंदिर
ब्रह्मोत्सव
राधा रमण जी के अलौकिक अभिषेक और दिव्य शृंगार का अनुपम उत्सव।
झूला यात्रा (Jhulan Yatra
रमण–रसराज श्रीकृष्ण का झूला उत्सव — वृन्दावन की सबसे मधुर परंपराओं में से एक।
अतिरिक्त पर्व:
जहाँ कान्हा ने रेत में खेलकर आनंद बरसाया
रमन रेटी का अर्थ है — “आनंद की रेत, दिव्यता का खेल”
यह वह भूमि है जहाँ बाल–गोपाल ने अपने नन्हें चरणों से रेत को पवित्र कर दिया।
कथा – श्रीकृष्ण के बाल–लीला की प्रथम धरती
यमुना के उस पार, जहां आज गोकुल स्थित है, वासुदेव जी नवजात श्रीकृष्ण को बदलकर यशोदा–मैया की गोद में सौंप आए। यही गोकुल कृष्ण के – पहले खेल, पहले कदम, पहली मुस्कान, और पहली माखन–लीला की भूमि है।
कथा है कि रमन रेटी की रेत में आज भी दिव्य स्पंदन है, मानो श्रीकृष्ण की बाल–चपलता और पवित्र आनंद अब भी वहीं बिखरे हों। भक्त यहाँ आकर अनुभव करते हैं कि— “यहाँ हवा भी गोपाल के बचपन की तरह मासूम लगती है।”
विशेष सेवा सुझाव
“रेत पर लेटकर प्रार्थना” यह सेवा अहंकार–क्षालन और मन को खाली करने का माध्यम मानी जाती है।
शरीर माँ धरती पर और मन बाल–गोपाल के चरणों में — यह क्रिया भक्त को गहरी विनम्रता, हृदय–शुद्धि और प्रेम–ऊर्जा से भर देती है।
स्थान: मथुरा से कुछ ही किलोमीटर दूरी
निकट स्टेशन: Mathura Junction
परिवहन: ऑटो, ई–रिक्शा और लोकल जीप
संलग्न धाम: नन्दभवन, ब्रह्मांड–घाट, गोपाललाल मंदिर
गोकुल अष्टमी
बल–गोपाल झूला उत्सव
ब्रज की होली (गोकुल–विशेष)
जहाँ नंद–यशोदा के लाल ने अपना शैशव बिताया
यह वही पावन धरा है जहाँ बाल–कृष्ण के कदमों की छाप आज भी हवा में महसूस होती है। नंदगाँव की पहाड़ी पर स्थित नंद भवन वह स्थान है जहाँ माँ यशोदा ने कान्हा को पाला, सँवारा और उनसे संसार को प्रेम, सरलता और आनंद का संदेश मिला।
कथा – बाल लीला का घर, प्रेम का प्रथम विद्यालय
गोकुल में कंस के अत्याचार बढ़ने पर नंद बाबा ने कृष्ण को लेकर नंदगाँव सुरक्षित स्थान पर आ बसे।
यहीं कान्हा ने अपना बचपन बिताया — माखन–चोरी , ग्वाल–बाल संग गाय चराना , बांसुरी की मधुर तान , रास–लीला की प्रथम झल , माँ यशोदा की ममतामयी डाँट और दुलार, नंदगाँव वह भूमि है जो ममता, सुरक्षा, आनंद और परिवार–प्रेम का पवित्र स्वरूप है।
विशेष सेवा सुझाव
बच्चों के नाम से ‘रुई–माखन’ का भोग
यह भोग बाल गोपाल की विशेष प्रिय सेवा मानी जाती है। भक्त विश्वास करते हैं कि इससे: बच्चों की रक्षा, स्वास्थ्य, और उज्ज्वल भविष्य , का ईश्वरीय आशीर्वाद मिलता है।
स्थान: नंदगाँव, मथुरा वृंदावन क्षेत्र
विशेषता: Hilltop Temple (ऊँची पहाड़ी पर स्थित)
निकट स्टेशन: Mathura Junction
निकट धाम: बरसाना (मात्र 7–8 किमी), गोकुल, रमन रेटी
नंदोत्सव
कृष्ण जन्म के अगले दिन — नंदगाँव का प्रमुख उत्सव।
ब्रज की होली (Lathmar Holi के समीप) बरसाना–नंदगाँव की पारंपरिक होली विश्व–विख्यात है।
अन्य: झूला उत्सव , माखन–मिश्री भोग उत्सव , कार्तिक मास उत्सव
जहाँ मन–मोहक प्रभु मन को भी अपने वश में कर लेते हैं
वृन्दावन की पहाड़ी पर स्थित मदन मोहन मंदिर वह स्थान है जहाँ श्रीकृष्ण अपने मदन–मोहन स्वरूप में विराजते हैं — एक ऐसा रूप जो कामदेव तक को मोहित कर दे, और मन को भटकने से रोककर भक्ति में स्थिर कर दे।
यह धाम मन की चंचलता पर विजय पाने का आध्यात्मिक केन्द्र माना जाता है।
कथा – वज्रनाभ द्वारा प्रतिष्ठित दिव्य स्वरूप
वृन्दावन के प्राचीनतम वैष्णव मंदिरों में से एक, यह धाम अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। परम्परा के अनुसार: मूल विग्रह वज्रनाभ (श्रीकृष्ण के पर–नाती) द्वारा प्रतिष्ठित माना जाता है। यहाँ का स्वरूप मदन–मोहन कहलाता है क्योंकि वे मन को मोह लेने वाले अनुपम सौन्दर्य और अद्भुत शांति के प्रतीक हैं। यह मंदिर सनातन भक्ति धारा और छः गोस्वामी परम्परा से गहरा जुड़ा है। मदन मोहन जी की स्थिर, शांत और निर्भ्रांत मुद्रा मन को तुरंत
आत्म– वलोकन और आत्मिक अनुशासन की ओर ले जाती है।
विशेष सेवा सुझाव
“कृष्ण–नाम लेखन साधना” मदन मोहन जी के समक्ष बैठकर 108 बार “कृष्ण” लिखना मन को चमत्कारिक रूप से एकाग्र कर देता है। इससे: मन का भटकाव रुकता है, विचार–शक्ति शुद्ध होती है , ध्यान और जप में गहराई आती है , यह साधना विशेष रूप से विद्यार्थी, साधक और मानसिक शांति खोजने वालों के लिए अत्यंत कल्याणकारी मानी जाती है।
स्थान: वृन्दावन की ऊँची पहाड़ी (Kaliya Ghat के पास)
निकट स्टेशन: Mathura Junction / Vrindavan
मंदिर परिवेश: प्राचीन, शांत और साधना के लिए अनुकूल
आसपास के धाम: गोविंद देव जी मंदिर, राधा–वल्लभ मंदिर
महाशयन उत्सव
ब्रज की होली
कार्तिक मास दीपदान
झूलन उत्सव (सीमित रूप में)
राधा रानी की जन्मभूमि – प्रेम का शाश्वत धाम बरसाना वह पावन धरा है जहाँ श्रीराधा रानी, श्रीकृष्ण की सर्वोच्च प्रिया, ने अवतार लिया। यह स्थान अनंत प्रेम, करुणा, माधुर्य और समर्पण का प्रतीक है — क्योंकि कृष्ण–भक्ति राधा–भाव के बिना पूर्ण नहीं।
उत्पत्ति / लीला – राधा रानी का आनन्द–निकेतन
बरसाना को “वरसाना” भी कहा जाता है — जिसका अर्थ है ईश्वर का वरदान। , पर्वत की चार पहाड़ियों को राधा–कृष्ण के चार दशक (चार दिशाओं) से जोड़ा जाता है। शास्त्रों में वर्णित है कि यहीं से रास–लीला, प्रेम–ऋतु, लाड़–प्यार, और मधुर–शृंगार की धारा प्रवाहित हुई। बरसाना की लठमार होली केवल उत्सव नहीं — यह राधा–कृष्ण की हास–लीला का अमृत अवशेष है। यह धाम याद दिलाता है—
“जहाँ राधा हैं, वहीं कृष्ण का पूर्ण स्वरूप प्रकट होता है।”
विशेष सेवा सुझाव
राधे–नाम जप” मंदिर परिसर में 108 बार , यह साधना हृदय में प्रेम, करुणा और भक्ति की कोमलता स्थापित करती है। राधा रानी का नाम स्वयं में आत्मशुद्धि का महामंत्र माना गया है।
स्थान: बरसाना, मथुरा जनपद
मंदिर स्थिति: पहाड़ी पर सीढ़ियों का लम्बा मार्ग, परन्तु अत्यंत पवित्र अनुभव
निकट शहर: कोसी कलां, मथुरा
निकट धाम: नंदगाँव, कुसुम सरोवर, राधा कुंड
लठमार होली (विश्व–प्रसिद्ध) : राधा–कृष्ण की हास–लीला पर आधारित यह होली बरसाना–नंदगाँव की अद्वितीय परंपरा है।
राधाष्टमी: राधा रानी का जन्मोत्सव — दिव्य शृंगार और मधुर कीर्तन से अनुपम दृश्य।
झूलन उत्सव : श्रीजी के झूले के दर्शन — अत्यंत माधुर्यपूर्ण।
जहाँ स्वयं गिरिराज — श्रीकृष्ण का प्रत्यक्ष स्वरूप हैं गोवर्धन वह दिव्य भूमि है जहाँ गिरिराज जी स्वयं श्रीकृष्ण के अंग–स्वरूप माने जाते हैं। ब्रज में कहा जाता है— “गोवर्धन कृष्ण नहीं, कृष्ण स्वयं गोवर्धन हैं।”
यह धाम रक्षा, कृपा, विनम्रता और दिव्य शरणागति की अद्वितीय अनुभूति प्रदान करता है।
कथा – इन्द्र–गर्व का नाश और शरणागति का संदेश जब इन्द्र ने ब्रजवासियों पर प्रलयकारी वर्षा की, तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी उँगली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर पूरा ब्रज सुरक्षित कर दिया। उन्होंने कहा— “गिरिराज मेरी देह हैं; इनकी पूजा ही सच्ची मेरी पूजा है।”
यह लीला सिखाती है – शरण में आने वालों की रक्षा निश्चित है। अहंकार का अंत होता है और विनम्रता का शासन। ईश्वर साधारण प्रतीत होने वाली चीज़ों को भी दिव्यता से भर देते हैं।
विशेष सेवा – गोवर्धन परिक्रमा
“एक परिक्रमा — चाहे छोटी ही क्यों न हो — कृपा का अनुभूतिपूर्ण प्रभाव दे जाती है।”
परिक्रमा तीन प्रकार की होती है:
भक्त मानते हैं कि हर कदम विघ्नों को काटता है और कृपा को बढ़ाता है।
(पूरी परिक्रमा 5–7 घंटे में सम्पन्न होती है।)
गोवर्धन पूजा / अन्नकूट उत्सव
कार्तिक मास दीपदान
गिरिराज शयन–जागरण उत्सव परिक्रमा मेला
भावार्थ
“जिसने गोवर्धन उठाया, वह आज भी हमारे सभी बोझ उठाते हैं।
हर चिंता, हर बाधा, हर भय — गिरिराज के चरणों में हल्के हो जाते हैं।”
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